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प्रकरण--३२
देवदर्शन का आनंद

यों ये लोग काशी में कहीं न कहीं ठहरकर अटरम सट- रम अपना काम निकाल ही सकते थे क्योंकि जो यात्रा की घुड़दौड़ करते हैं उन्हें यदि अच्छा मकान न मिले ता न सही, किंतु पंडितजी को दौड़ करना पसंद नहीं था, वह चाहते थे कि "जहाँ जाना वहाँ मन भरकर रहना, जो कुछ करना वह शास्त्रीय रीति से करना और किसी काम में उतावला बनके उसको मिट्टी में न मिला देना।" वह प्राय: कहा करते थे कि "जल्दी का काम शैतान का होता है।" बस इसलिये उन्होंने जब गौड़बोले को पहले से काशी भेजा तब खूब ताकीद कर दी थी कि "किराया कुछ अधिक भी लग जाय तो कुछ चिंता नहीं किंतु मकान ऐसा मिलना चाहिए जिसमें भगवती भागीरथी के दर्शन हरदम होते रहें। जहाँ निवास करने में न तो गंगास्नान के लिये दूर जाना पड़े और न वहाँ से विश्वनाथ का मंदिर ही अधिक दूर हो।" गौड़बोले ने जब ऐसा ही मकान तलाश कर लिया तब उस पर धन्यवादों की भी खूब ही वर्षा हुई।

जब से ये लोग यहाँ आए हैं नित्य ही मकान पर शरीर- कृत्य से निवृत्त होकर गंगास्नान करते हैं। वहाँ ही संध्या-