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उन्होंने मेवा ताऊ से कहा है।" बस इतना सुनते ही आग लग गई।" वर हमारा और हमारे बाप दादा का। मजूरी करते करले तो हम मर रहे हैं। और यह साला हमें निका- जानेवाला कौन?" ऐसा कहकर देवा सेवा को, जो उससे उमर में बीस वर्ष बड़ा होगा, निकाल देने के लिय घसीट रहा है। इस दशा को देखकर सब बच्चे चिल्लपों मचाने लगे तब मेवा ने उनके एक एक चपत जमाई। बच्चे चुप होने के बदले अधिक अध क रोने लगे और उनके रोने में सेवा की बहू ने भी साथ दिया। जिन बच्चों ने मेवा की चपते खाई थी उनकी महतारियाँ लड़ने को दौड़ी आई। औरतों को लड़ती देखकर उनके खसमों ने वे समझे बूझे गालियाँ देना आरंभ किया। बस इस तरह घर में ऐसा कुहराम मचा कि काम पड़ी बात भी सुनना बंद हो गया।

बस बात की बात में गाँव के चौकीदार आ गए। उन्होंने आकर सेवा, मेवा और देवा को गिरफ्तार किया। गिरफ्तार करते ही जो गोलियोँ की गोलियाँ अपने देवर जेठों पर, दिव- रानियों जिठानियों पर चलाने के लिये तैयार की गई थीं उनसे चौकीदारों की खबर ली गई। यों तो बूढ़े भगवानदास के दबाव से अथवा संकोच से ही सही, चौकीदार उन्हें समझा बुझाकर छोड़ भी देते परंतु जब उन पर ही गालियाँ पड़ने लगीं तब उन्हें गुस्सा भी आना ही चाहिए। बस उन्होंने तीनों की भुशकें कस लीं। घर के चार पाँच आदमी और