पृष्ठ:आदर्श हिंदू २.pdf/३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(३२)


चिल्लाहट। जहाँ कोकिला का कलरव या वहाँ अब खोमचेवालों की पुकार। जहाँ सत्य के सिवाय झूठ सौगंद खाने को भी नहीं मिलता था वहां अब व्यापार में झूठ, व्यवहार में झूठ ।"

इन लोगों ने एक एक पर्णकुटी के जाकर दर्शन किए। उनमें अच्छे अच्छे योगी भी दिखाई दिए, किंतु त्याग के बदले संग्रह, ब्रह्मानंद के स्थान में गृहत्याग का शोक। बस देखते ही इनका हृदय जल उठ "ऐसे वनवासी से तो गृहस्थ ही अच्छे। घर में रहकर यदि पंचेंद्रिय का निग्रह करें, यदि गृहस्थाश्रम का पालन किया जाय तो इस वन से वह घर हजार दर्जे अच्छा है। "इस तरह कहते हुए जब ये लोग लौटकर गंगातट पर पहुँचे छ एकाएक इनकी दृष्टि एक साधु पर पड़ी। साधु महाराज का भव्य ललाट, काषाय वस्त्र और उनकी कांति के दर्शन करके ये लेकर अवश्य मंत्र-मुग्ध सर्प की तरह निश्चेष्ट, निस्तब्ध होकर टकटकी लगाए, पत्थर की मूर्ति के समान खड़े रहे। साधु कहीं से भिक्षा में दो तीन रोटियां लाया था। उसने उन्हें भगवती के जल में धोकर खाया। खाकर उसने दो तीन अंजुली गंगाजल पिया और तब हाथ धोकर कुल्ली करके वह अपना सिर उठाए किसी विचार में मग्न, कुछ गुनगुनाता हुआ वहाँ से जंगल की ओर चल दिया। बस इनके मनों ने भी साधुजी का पीछा करने की जिद पकड़ी। मन की आज्ञा का वशबर्ती होकर शरीर भी साथ हुआ और इस