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शंकर ने जिस तरह बौद्धों को परास्त कर सत्य सनातनधर्म की देश भर में दुहाई फेरी और इसलिये जैसे शंकराचार्य को साक्षात् शंकर कहा जाने में बिलकुल अत्युक्ति नहीं उसी तरह वैष्णवों के इन चारों संप्रदायों आचार्य ने हिंदू धर्म का उद्धार किया है। पुराणों में इस बात का पता लगता है कि ये परमेश्वर के अवतार थे। उन्हीं में से मेरा आराध्य देव भगवान् महाप्रभु की यह बैठक हैं। शास्त्रों में इस बात का प्रमाण मौजूद है कि जिस कुल में सेमयाग (यज्ञ) हों उसमें भगवान् अवतार धारण करते हैं। इनके पूर्वपुरुषों ने इनके यज्ञों का अनुष्ठान किया और इसलिये भक्ति-रस के अमृत के हिंदुओं के अंतःकरण को पवित्र करने के लिये, संसारी जीवों का उद्धार करने के लिये, इन्होंने इस पुण्य-भूमि : पदार्पण कर शुद्धाद्वैत मत का प्रचार किया। जैसे शैव और वैष्णव, प्रायः सब ही संप्रदायों के आचार्यो का जन्म दक्षिण में हुआ था वैसे ही इनका, किंतु सत्य ही यदि इनका प्रादुर्भाव न होता तो जो व्रजभूमि आज दिन तक स्वर्ग-सुख का आनंद दे रही हैं वह व्रजभूमि न रहती। आजकल के कितने ही आचार्यो की दशा देखकर, पर-मतों से द्वेष देखकर और कितने ही अन्यान्य कारणों से जाग आक्षेप करने लगे हैं और उन आक्षेपों को मेटने के लिये जितने ही ये लोग जल्दी सँभलें उतना ही भला है, किंतु इसमें संदेह नहीं कि इस मत में जो प्रकार भक्ति का है वह अलौकिक है, इनकी