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शुभ संवाद अवश्य मिलना चाहिए शीघ्र आना चाहिए। आज ही, अभी।" जब इस प्रकार से वार्तालाप करते हुए पंडित प्रियानाथ प्रातःकाल के नित्य नियम से निश्चिंत होकर उठने लगे तब ही डाकिए ने आकर इस हाथ में कांतानाथ की चिट्ठी थँमाई। पत्र इन्होंने पढ़ा, प्रियंवदा को पढ़ाया और गौड़बोले की उत्कंठा देखकर संक्षेप से उसका आशय कह दिया। इस चिट्ठी में प्रायः वे ही बातें लिखी हुई थीं जो तेई- सवें प्रकरण में हैं। उनके सिवाय इतना और लिखा था कि --

"इसका फैसला आपकी आज्ञा से आपके पधारने पर होगा। परमेश्वर आप दोनों को प्रसन्न रखें। मेरे लिये तो आप ही माता पिता हैं।"

पत्र पाकर पंडिताइन को जो आनंद हुआ वह अकथनीय है। उसका ठीक स्वरूप प्रकाशित कर देने के लिये कोश में शब्द नहीं है। अनुभव ही उसे प्रकट कर सकता है। किंतु हाँ! गौड़बोले भी सुनकर गद्गद हो गए। उन्होंने आँखों में आँसू लाकर कहा -- "परमेश्वर यदि किसी को भाई दे तो ऐसा ही दे। आजकल के से जरा जरा सी बात के लिये कट मरने-वाले, अदालत लड़नेवाले भाई से तो बिन भाई ही अच्छा।"

"महाशय कहने से क्या होता है? यदि अन्नजल हुआ तो गाँव में ले जाकर उसके गुण आँखों से दिखलाऊँगा।"

वाणी से नहीं, केवल आँखों से मुखकमल को खिलाकर आधे घूँघट की ओट से पति के नेत्रों में अपने नेत्र उलझाकर