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उच्च अथवा नीच मान बैंठेंगे तो भगवान् का खाता मिट्टी हो जायगा। मुसलमान और ईसाइयों की तरह भगवान् को प्रलय के बिन सब के पोथे खोलने पड़ेंगे। मेरे बतलाए हुए भक्तों की पूर्व संचित पापराशि पूर्व जन्म में ही अधिकांश नष्ट हो चुकी थी। उधर उनके पापों का थोड़ा हिसा शेष था और इधर उन्होंने इस जन्म में उत्कृष्ट पुण्य संचय किया, परमात्मा की असाधारण भक्ति की, जो कुछ किया चित्त की एकाग्रता से, अनन्य भक्ति के साथ किया। अब भी ऐसे उत्कृष्ट कर्म करनेवाले पूजे जा सकते हैं। उन्हें आवश्यकता ही नहीं होती कि कोई उन्हें नीचे से ऊँचा उठाने के लिये प्रयत्न करे, सिफारिश करे किंतु आप लोग नई टकसाल खेलकर शूद्रों को द्विजत्व का सार्टिफिकेट देना चाहते हैं उनमें कोई वाल्मीकि और नारद के समान है भी? हो तो बतलाइए!"

"तब क्या आपका मतलब यही है कि जो जैसा है वह वैसा ही पड़ा रहे। किसी की उन्नति की चेष्टा ही न की जाय? तब अवश्य चौपट होगा!"

"नहीं इसमें भी आप भूल करते हैं। मेरी मनसा ऐसी कदापि नहीं हो सकती। मैं मानता हूँ और शास्त्रों के सिद्धांत पर मानता हूँ। गीता में भगवान् श्रीकृष्णचंद्र ने आज्ञा दी है कि --
ब्राह्मणक्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैर्गुणैः॥१॥