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धर्म की बात जाने दीजिए। जो लोग देशरक्षा के लिये, खेती का सर्वनाश होता देखकर, घी और दूध के आग के मोल बिकने पर भी, शुद्ध में मिलने से भी यदि नहीं चेतते तो उनकी बात जाने दीजिए किंतु वहाँ फूँका का अनर्थ बड़ा भारी हैं।"

"हैं फूँका क्या?"

फूँका की नली लगाकर गौओं से बलपूर्वक दूध दुह लिया जाता है। बात इस तरह है कि हरियाणो और कोशी जिले में जो अच्छी अच्छी गाएँ गर्भवती होती हैं उन्हें कलकत्ते के हिंदू ग्वालें खूब दाम देकर खरीद ले जाते हैं। ऐसे समय में खरीदते हैं जब उनके बच्चा पैदा होने में अधिक दिन बाकी न रहें। कलकत्ते पहुँचने पर जब वे व्याती हैं तब बच्चे तुरंत ही कसाई के हाथ बेंच दिए जाते हैं। यदि भैसों की तरह गायें भी बच्चे बिना दूध दे दिया करती हों तो उन्हें फूँके का कष्ट न उठाना पड़े परंतु उनमें संतान-प्रेम का जो महद् गुण है उसी से कलकत्ते जाकर उन पर कष्ट के पहाड़ टूट पड़ते हैं। कलकत्ते से जमीन महँगी, दुर्मिल और किराया अनाप सनाप। फिर उन बिचारियों को ग्वालों के यहाँ सुख से बैठने के लिये जगह कहाँ? जब चरने के लिये बाहर जाने को वहाँ कोई गोचारण की भूमि नहीं तब यदि दिन रात वे थान में बँधी रहें तो इसमें कुछ अचरज नहीं, परंतु उन्हें बैठने के लिये भी पूरी जगह नहीं मिलती। थोड़ी थेाड़ी नपी हुई जगह में वे बाँधी जाती हैं और सो इस तरह