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चुककर मैं उऋण हो जाऊँगा। किंतु उनके निष्कपट, निश्चल और नि:स्वार्थ उपकारों को देखते हुए कहना पड़ता है कि मुक्त नहीं हुए। शास्त्रों में यह भी तो लिखा है कि एक बार के गया श्राद्ध से गाता से तीन दिन तक उऋण होते हैं।"

"क्यों जी माँ बाप में इतना अंतर क्यों?"

"निःसंदेह दोनों के उपकार निःस्वार्थ ही होते हैं किंतु पिता से माता में निःस्वार्थता की मात्रा अधिक होती है। पिता पुत्र को पढ़ा लिखाकर कुछ बदला भी चाहता है। वह चाहता है कि लड़का विद्वान, बुद्धिमान होकर धन कमावे, यश कमावे और नाम कमावे किंतु मातृस्नेह अलौकिक है। उसमें स्वार्थ का लेश नहीं। यह बदला बिलकुल नहीं चाहती। यदि उसके प्रेम में किंचित भी बदले का अंश होता तो पशु पक्षी अपनी संतान का लालन पालन क्यों करते? बेटा कपूत होने पर बाप उसे फटकारता है, मारता पीटता है किंतु माता! अहा! माता का स्नेह! वह अलौकिक स्नेह है! बेटा चाहे जैसा कपूत हो, माता को कैसा भी क्यों न सतावे किंतु माता कभी उससे क्रुद्ध नहीं होती, कभी उसका जी नहीं दुखने देती, कभी उसे मारना पीटना सहन नहीं कर सकती और यहाँ तक कि पिता यदि अपराध करने पर उसे मारे तो उसके बदले स्वयं पिटने को तैयार होती है।"

सबने कहा -- "अवश्य ठीक है। बेशक सत्य है।" किन्तु प्रियंवदा कुछ न बोली। चुपचाप सुनती रही। शायद इस-