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दीजिए कि आप पुनर्जन्म मानते है अथवा नहीं? स्वर्ग और
नरक मानते हैं अथवा नहीं?"
"वास्तव में हम पुनर्जन्म को मानते हैं और बहस न बढ़ाकर अपने असली प्रश्न का उत्तर पाने के लिये स्वर्ग और नरक को भी मान लेंगे ताकि विषयांतर न हो जाय।"
"आप शायद चारों वेदों को, मनुस्मृति और गीता को और इतिहास दृष्टि से महाभारत तथा वाल्मीकीय रामायण को प्रामाणिक माननेवाले हैं? परंतु वेद शब्द से मंत्र और ब्राह्मण दोनों को मानते हैं अथवा कंवल मंत्रभाग को?"
"अवश्य हम इन्ही ग्रंथों को प्रमाणभूत मानते हैं परंतु ब्राह्मण भाग को ईश्वर कृत नहीं, मनुष्य कृत मानते हैं। आपको मंत्र भाग के ही प्रमाण देने चाहिएँ।"
"यदि आप ब्राह्मण भाग को वह न मानें तो हमारा नहीं,
आपका भी समस्त कर्मकांड लोप हो जाय। इसका पहले
एक बार बूँदी में और एक बार काशी में निर्णय हो चुका है।
काशी में राजा शिवप्रसाद सी. एस्. आई. की स्वामी दयानंद
जी सरस्वती से लिखा पढ़ी थी और उसमें मध्यस्थ डाकृर थीयो
थे और बूँदी में आपके दो विद्वानों से बूँदी के पंडितों का
शास्त्रार्थ था और संस्कृत के धुरंधर विद्वान्, धाराप्रवाह संस्कृत
संभाषण करनेवाले स्वर्गवासी महाराजाधिराज महाराज राजा
श्रीरामसिंह जी बहादुर जी. सी. एस. आई., सी. आई. ई.