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और गयावालों में इने गिनें को छोड़कर पढ़ने लिखने की सौगंद थी। जो थोड़े बहुत पढ़े भी थे वे वैसे ही काम चलाऊ। बस इसलिये सारा भार प्रियानाथ और गौड़बोले पर आ पड़ा। इन दोनों में अग्रणी पंडित जी और सहायक गौड़बोले। परिणाम में प्रतिपक्षी दाँत न दिखला जाय इस- लिये रुपया एक जगह अमानत रखवा दिया गया। शास्त्रार्थ लेखबद्ध करना निश्चय हुआ, जबानी जमा खर्च से किसी न किसी के मुकर जाने का भय था। इतना होने पर मध्यस्थ नियत करने की पंचायत पड़ी। बहुत वाद विवाद के बाद बुध गया के बैद्ध पुरोहित मिस्टर अनुशीलन एम्. ए. मध्यस्थ बनाए गए। यह विलायत की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एम. ए. थे। वहाँ इन्होंने संस्कृत में ही एम्. ए. पास किया था। इसके अतिरिक्त यह स्वर्गीय अध्यापक मैक्समूलर के शिष्य थे और आठ वर्ष तक काशीवास करके इन्होंने अध्य- यन अध्यापन से अच्छी योग्यता संपादन कर ली थी।

शास्त्रार्थ आरंभ हुआ। कार्यारंभ में परमेश्वर की स्तुति करके वादी ने कहा -- "हमारा प्रश्न नोटिस में स्पष्ट रूप से व्यक्त हो चुका है। अब उत्तर देने का आपको अधिकार है।"

"बेशक! परंतु उत्तर देने के पूर्व बातों का स्पष्टी- करण हो जाना चाहिए। आपके प्रश्न से यह तो साफ हो गया कि आप ईश्वर को निराकार मानते हैं किंतु यह भी बतला