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आपके मरने पर यदि आपके जीवन पर न थूकें, आपकी निंदा न करें तो मेरा नाम फेर देना। खैर मरने के बाद क्या होगा सो आपको विश्वास नहीं, आप यदि यमलोक में जाकर नरक यातना भोगने से अभी नहीं डरते तो न सही परंतु अब वह जमाना नहीं रहा कि आप जैसे कुकर्मियों को अपना गुरू मान कर लोग आपके चरण पूजें। चारों ओर से नास्तिकता की आग जल रही है, आपके धन दौलत को आपके यार दोस्त लूटे लिए जा रहे हैं और आप अपने पूर्वजों की कीर्ति, अपनी इज्जत और यों ही अपना सर्वस्व धूल में मिला रहे हैं। महाराज, जरा सँभलिए।"

पंडित जी के लेक्चर का गुरू जी पर असर हुआ। वाच- स्पति ने उनके नौकरों की, मित्रों की और रंडियों की पोल खोलकर दिखला की और परिणाम यह हुआ कि गुरू जी ने बुरे आदमियों को, बुरी स्त्रियों को नौकरी से अलग कर सज्जन नौकर रक्खे, भागवत और पुराणादि की कथाएँ सुनना, नित्य विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना और जो कुछ आबे उसे परो- पकार में लगाना आरंभ किया। इसके आगे लिखने की आवश्यकता नहीं। यह काम एक दिन में नहीं हुआ किंतु पंडित जी का बोया हुआ बीज वाचस्पति के सींचने से थोड़े समय में वृक्ष बन गया।

अस्तु! यों अपने कार्य से निवृत्त होकर जब हमारी यात्रा- पार्टी स्टेशन की ओर जाने को तैयार हुई तब ही पंडित प्रिया-