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दरा पढ़े लिखे नौकर रख लेने की शक्ति दी है उन्हें पढ़कर
क्या नौकरी करनी है? यही इनकी भावना थी और भावना
भी क्या थी इनके खुशामदो नौकरों ने, यार दोस्तों ने और
ठगी में पराकाष्ठा को पहुँचे हुए कारिदों ने, पालने में माता की
गोद से लोरियाँ गाते समय पट्टी पढ़ा दी थी। इनके पिता
ने इन्हें पढ़ाने का प्रयत्न भी बहुत किया। संस्कृत पढ़ाने के
लिये पंडित, फारसी पढ़ाने के लिये मौलवी और अँगरेजी पढ़ाने
के लिये मास्टर नौकर रक्खा परंतु इन्होंने एक अक्षर भी न
सीखा और जो कुछ सीखा भी था सो गुरू जी के भेट कर
दिया। इस तरह चाहे इनसे अपना लिखा हुआ भी अच्छी
तरह न पढ़ा जाता हो किंतु मुकद्दमा लड़ाने के लिये सारा
दीवानी और फौजदारी कानून इनकी जबान पर है। यह
बुलबुलें लड़ाने में उस्ताद हैं, तीतर लड़ाने के लिये अवश्य
बाजी पाते हैं, मुर्ग लड़ाना इनका नित्य नियम है और जब
कभी मौज आती है तब भैंसे लड़ाते हैं, टट्टू लड़ाते हैं और
भोंदुआ कुम्हार के यहाँ से मँगाकर गधे तक लड़ा डालते हैं।
इनके चचा, ताऊ, मामा, फूफा और मौसा -- यों सात घरों
में आठ सात विधवाओं को छोड़कर यह अकेले ही हैं।
इन्होंने विवाह भी दो तीन कर लिए हैं। हो एक घर में
डाली हुई औरतों से चाहे चार पाँच लड़के लड़कियाँ भले ही
हुई हों किंतु इनकी विवाहिता कुलवधुओं ने कभी स्वप्न में भी
गर्भ धारण नहीं किया। इनका असली नाम यद्यपि परमेश्वर-