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जीविनी हो।" वह अपनी जैसी कुछ दशा है उसमें मस्त रहने- वाला आदमी है बूढ़े बुढ़िया आजकल अपना कर्तव्य पालन होता देखकर, पितृ-ऋण चुकता देखकर धीरे धीरे शास्त्रीय कार्य संपादन होने से हड़बड़ी न पड़ती देखकर आनंद में हैं। वे पंडित जी का साथ पाकर बारंबार उन्हें धन्यवाद देते हैं। किंतु गोपीलाल को इस झगड़ों सं कुछ मतलब नहीं। श्राद्ध के काम में भूखों मरते मरते चाहे औरों को साँझ ही क्यों न पड़ जाय परंतु वह दोनों बार डटकर खा लेता है और मा बाप की बंदगी में भोला कहार से बदाबदी करने को तैयार रहता है।


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