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लिये वृटिश गवर्मेंट जैसी सरकार तैयार है और यहाँ के प्रजा- हितैषी सज्जन इस काम के लिये जब जी तोड़ परिश्रम कर रहे है तब परमेश्वर अवश्य किसी दिन कृपा करेगा। मार्ग अच्छा पकड़ लिया गया है और आशा अच्छी ही होती है।"

"हाँ यह ठीक है परंतु महाराज अधिक भय चरित्र की दरिद्रता का है। सचमुच ही चरित्र की दरिद्रता हमारा सर्व- नाश कर रही है। उसी की बदौलत हम धन के दरिद्री हैं, मन के दरिद्री है और सर्वस्त्र के दरिद्री हैं। उस दिन वरूणा गुफा पर उन महात्मा जी ने यथार्थ कहा था कि एक साधु से जितना परोपकार हो सकता है उतना सौ गृहस्थों से नहीं हो सकता। इतना इसमें और बढ़ा देना चाहिए कि वह व्यक्ति चाहे फकीर हो, चाहे लखपती हो, चाहे गृहस्थय हो अथवा संन्यासी हो, चाहे राजाधिराज हो अथवा दीन किसान हो, उसे सच्चरित्र अवश्य होना चाहिए। उसमें आत्मविसर्जन की शक्ति होनी चाहिए, उसकी विचार शक्ति (विल पावर) उत्कृष्ट होनी चाहिए और सबसे बढ़कर यह कि वह सारा- सार का विचार रखता हो और उस पर ईश-कृपा भी होनी आवश्यक है।"

"परंतु साहब, आपने इस यात्रा में एक दीनबंधु पंडित को छोड़कर कितने प्रादमी ऐसे देखे? चरित्र को भ्रष्टता के उदाहरण पग पग पर मौजूद हैं। आप निरंतर जगह जगह देखते चले आए हैं। आप प्रति दिन देखते रहते हैं।"