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पैठ जम जायगी तब सत्यवत्ता को छोड़कर ग्राहक कभी, हर- गिज भी और जगह नहीं जायँगे। यों ही खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ सकता है। अब की बार घर चलकर कांता- नाथ को इसी धंधे में प्रवृत्त करना है, यदि परमेश्वर न चाहा तो केवल सत्यनिष्ठा से अवश्य सफदता होगी। ईश्वर मालिक है।"

पंडित जी के इस तरह लेकचर को चाहे मालदार का मांस नोचकर खा जानेवाले उन गीधों ने न सुना हो -- सुनने से ही क्या, उन स्वार्थांधों पर कुछ असर न पड़े तो न भी पड़े परंतु वह जो कुछ मन में आया जोश के मारे सुना गए। उन्होंने अपनी डायरी में भी कितनी बातें लिखीं। केवल यही क्यों वह जो कुछ नई बात पाते थे अपने पास लिखते जाते थे। अस्तु अब देखना है कि वह घर पहुँचकर क्या क्या करते हैं।

जो कुछ होगा देखा जायगा। अभी सब होनहार के अँधेरे में है। भूतकाल की रात्रि और होनहार को रात्रि के मध्य में वर्तमान का दिन हुआ करता है। अतीत काल का अनुभव और वर्तमान का प्रकाश दोनों ही मिलकर होनहार पर रोशनी डाला करते हैं। यही संसार का नियम है। परंतु सर्वोपरि परमेश्वर की इच्छा है; वही मुख्य है। उसके बिना मनुष्य किसी काम का नहीं। बिकुल रद्दी। निकम्मा।

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