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इन्होंने गया में जाकर उस सामग्री की दुर्दशा देखी तब घृणा
से, क्रोध से इनका हृदय तप उठा। इन्होंने देखा कि श्राद्ध में
प्रदान किए हुए जौ के आटे के पिंडों को लोग सुखाकर फिर
आटा तैयार कर लेते हैं। वह आटा भी अच्छे के साथ फिर
पिंड बनाकर श्राद्ध करने के लिये बेचा जाता है। केवल
इतना ही क्यों किंतु पिंड फल्गू में नहीं डालने दिये जाते,
गौओं के मुख में से छीन लिये जाते हैं और कितने ही भूखे
भिखारी कच्चे पिंडों को छीनकर भी खा जाते देखे गए हैं।
इस घटना को देखकर इनका मन बिलकुल खिन्न हो गया।
बेशक सत्परामर्श देने पर जगद्बंधु को धन्यवाद दिया गया।
इसके अतिरिक्त एक और बात वहाँ देखने में आई।
देखने में ही क्यों इन्हें उनका निशाना भी बनना पड़ा। जिस
जगह ये लोग टिके थे वहाँ पर इनके डील डौल से, रहन सहन
से मालदार समझकर सौदा बेचनेवालों का इनके पास ताँता
लग गया। ऐले फेरीवाले आगरे में बहुत आते हैं, काशी में भी
आते हैं किंतु इन लोगों में इन्हें सचमुच ही दिक कर डाला।
प्रयाग में जैसे ये भिखारियों से सताए गए थे वैसे ही यहाँ उन
लोगों से खरीदारों की हजार इच्छा न हो, वे चाहे जितना
मना करते जायँ, वे चाहे इन फेरीवालों को झिड़कें, फटकारें
भी परंतु उन्हें अपनी गठरी फैलाकर सामान दिखाने से
एक आया, दो आए, दस आए और वात की बात में
मकान भर गया। अब यदि यात्रियों की कोई गठरी ले गया