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आश्चर्य न सही किंतु लोग कहते हैं कि विज्ञान के बल से अँगरेजों ने जल, वायु, अग्नि और इंद्र को वश में कर लिया है। मैं कहता हूँ केवल इनको ही क्यों? हमारे तीर्थ भी उनके हुक्मीबंदे बन जाते हैं। इसका उदाहरण यही पुनः- पुना है। ज्यों ज्यों रेलवे लाइनें बनती जाती हैं त्योंही त्यों मदारी के साथ बंदर के समान पुनःपुना भी रेल के साथ खिंचा चला जाता है। बाँकीपुर से गया जानेवालों के लिये पुन:पुना अलग और काशी से जानेवालों के लिये अलग।

अस्तु गयाजी में पहुँचकर श्राद्ध का कार्य आरंभ करने से पूर्व पंडित प्रियानाथ के पुरोहित और पंडित दीनबंधु के सगे मा-जाए भाई पंडित जगद्बंधु की भी अवश्य प्रशंसा कर देनी चाहिए। वह भाई के समान ही सज्जन थे, पंडित थे, अच्छे कर्मकांडी थे, यात्रियों को, यजमानों को सतानेवाले नहीं थे और बड़े ही अल्पसंतोषी थे। अपने बड़े भाई को पिता के समान मानकर उनकी सेवा करते थे। पंडित प्रिया- नाथ ने उनको अच्छा ही दिया और जो कुछ इन्होंने दिया उन्होंने अतीव संतोष के साथ ले लिया। उन्होंने जाने से एक दिन पहले इस यात्रा-पार्टी को चिता दिया था कि --

"श्राद्ध में जिस सामग्री की अपेक्षा होती है उसे काशी से ले जाना। गयाजी में अच्छी नहीं मिलती।"

इसी परामर्श के अनुसार पार्टी ने सारा सामान साथ बाँध लिया और बाँध लेने में अच्छा ही किया क्योंकि जब

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