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विद्यार्थियों के हृदयमंदिर में डेरा कर लिया है वहाँ यदि प्रत्यक्ष मंदिर न भी हो तो कुछ चिंता नहीं। मूर्तिपूजा का यह प्रत्यक्ष उदाहरण है।"

ये बातें उस समय की हैं जब ये तीनों एक साथ काशा की गलियों में, विद्वानों के विद्यामंदिरों में उनकी कुटियों में, गंगातट पर सरस्वती की आराधना करके अपने नयनों को तृप्त, अपने हृदयों को पवित्र और इस तरह कृतकृत्य करने के लिये विचर रहे थे। ऐसे आज का कार्य समाप्त हुआ। आज प्रियंवदा का साथ ले जाने की आवश्यकता नहीं थी। आज भगवानदास के साथ जाने से कुछ लाभ नहीं था किंतु आज की यात्रा का हाल उन लोगों को समझाकर उन्हें अवश्य संतुष्ट कर दिया गया और तब कल वरूणासंगम पर एक दो महात्माओं के दर्शन के लिये जाना निश्चय हुआ।


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आ० हिं० -- ११