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"हा महाराज सत्य है। परंतु तीर्थगुरुओं की यहाँ भी दुर्दशा देखी। उनके लिये कमाई का मार्ग खुला रहने पर भी वे अपने बालकों को नहीं पढ़ाते। और साधुओं को भी अध्ययन का कोई स्वतंत्र प्रबंध नहीं।"

'नहीं है! इन दोनों के लिये पाठशालाएँ खुली हैं और अब सबसे बढ़कर भरोसा हिंदू विश्वविद्यालय पर किया जाता है। तीर्थगुरुओं में जैसे आप मथुरा, प्रयाग और काशी, गया में निरक्षर भट्टाचार्य, कुकर्मी और खोटे पाते हैं वैसे इनमें अच्छे भी हैं और जो हैं वे बहुत ही अच्छे हैं।'

"बेशक ठीक है परंतु क्या हिंदू विश्वविद्यालय से यह काम सिद्ध हो सकता है? यदि हो सके तो समझना होगा कि देश का सौभाग्य है। नहीं तो काशी में बड़े बड़े कई एक कालेज हैं, भारतवर्ष में कोड़ियों कालेज हैं, हजारों स्कूल हैं।"

"आशा तो अच्छी ही करनी चाहिए।"

"भरोसा तो ऐसा ही है। परंतु महाराज जो सरस्वती प्रयाग में सितासित संगम के साथ गुप्त रूप होकर बहती हैं उसका यहाँ प्रकट प्रवाह देख पड़ा। जिधर निकल जाइए उधर ही संस्कृत का अँगरेजी का एवं अन्य भाषाओं का धारा प्रवाह है। वास्तव में काशी विद्यामंदिर है। जैसे यहाँ भगवान् भूतभावन का और भागवती भगोरथी का निवास है वैसे ही यहाँ के हजारों आदमियों के मुख में, हृदय में सरस्वती विराजमान है। प्रत्यक्ष है। जहाँ भगवती ने विद्वानों के,