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इतने दिनों के अनुभव से पंडित प्रियानाथ की जो बनारस- वालों के लिये राय हुई उसका मर्म यही है कि काशी यदि बदमाशी में सीमा को पार कर गई है तो यहाँ भलमानसी भी ऊँचे दर्जे की है। यहाँ यदि व्यभिचार के लिये जगह जगह अड्डे दिखलाई देते हैं तो पातित्रत की भी पराकाष्ठा है। एक मोहल्ले में रहकर मील दो मील के फासले पर दूसरे माहल्ले में अपनी आशना को रखाना और उसके पास जाकर नित्य मौज उड़ाना यहाँ के अमीरों का शेवा है, इसमें यदि निंदा नहीं समझी जाती तो ऐसे भी नरनारी यहाँ कम नहीं जो पाप कथाएँ सुनकर "हर हर महादेव" का नामोच्चारण करते हुए कानों में अँगु- लियाँ डाल लेते हैं। यह बात एक दिन प्रियानाथ ने दीनबंधु से स्पष्ट कह भी दी और दोनों को खेद कम न हुआ।

इस तरह काशी भलाई और बुराई का घर है। यह जन- समाज की प्रदर्शिनी है। यदि सब देशों के नर नारी, कम से कम भारतवर्ष के प्रत्येक प्रांत के निवासी एक जगह देखने हों तो इसके लिये काशी से बढ़कर कोई नगर नहीं! यहाँ बंगाली, बिहारी, गुजराती, दक्षिणी, मारवाड़ी, पंजाबी, उड़िया, मद- रासी, कच्छी, सिंधी सब मौजूद हैं। यहाँ युरोपियन, जापानी, चीनी, सिंहाली और दुनिया के पर्दे पर जितनी जातियाँ हैं लगभग उन सबका नमूना मौजूद है। ये लोग केवल यात्रा के लिये, तीर्थस्नान के लिये आकर चले जाते हों सो नहीं। कोई तीर्थ सेवन करके "काशी मरणान्मुक्तिः"