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का खारा जल उसे जन्मते ही, निकालते ही नष्ट कर डालता है और जो कहीं अच्छे संस्कार ले कुछ बढ़ गया तो ऐसे ऐसे वंचकों का पाला उसका सर्वनाश कर डालता है।"

"हाँ यजमान, आपका कहना सच है। घर पर अब इन लोगों कों न दिया जाय ते यह आपकी रकम किनके लिये है?"

"गुरूजी महाराज, इनको भँजाकर उन दीन दुखियों को दीजिए जो सचमुच पेट पालने में असमर्थ हैं! वह देखिए (नाव में बैठे बैठे अँगुली से दिखलाकर) किनारे पर पड़े पड़े लूले, लँगड़े, अंधे, टुंडे और कोढ़ी कराह रहे हैं। हाय! उनकी दुर्दशा देखकर मेरा दिल चूरमूर हुआ जाता है। देखो! देखो! (भाई को दिखाकर ) उनके शरीर में से रक्त बह रहा हैं। हाथ पैर गल गए हैं! ( स्त्री की ओर सैन कर हुए) ओ हो! उनकी आँतें भूख के मारे बैठी जाती हैं। हाय! हाय!! वह नन्हा सा बच्चा बिलख बिलखकर रो रहा है। उनके दो, महाराज! (गुरूजी के पुकारकर ) उन्हें दो। इन लफंगों के उन विचारों के भी पेट काट दिए। इन लोगों के मारे उनकी ताब ही कहाँ है जो किसी के पास जाकर मांगें?"

"अच्छा यजमान, ऐसा ही होगा, परंतु हमारी दक्षिणा और ब्राह्मणभोजन, ये दो बातें रह गई।"

"रह गई तो कुछ चिंता नहीं। (कुछ देकर) यह लीजिए। इसमें आधे में आपकी दक्षिणा, अपके लिये भोजन