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प्रकरण--३६
प्रियंवदा का सतीत्व

तेंतीसवें प्रकरण के अंत में पंडित प्रियानाथ की प्राणप्यारी प्रियंवदा को माधवराध के घरहरे के निकट सं जब चार लठैत गठरी बांधकर ले गए तब अवश्य सूर्यनारायण के अस्ताचल विश्रांतगृह में चले जाने से अँधेर ने अपना डेरा- डंडा आ जमाया था और इसलिये उसकी ऐसी दशा देखने का किसी को अवसर ही न मिला, तब यदि उसकी रक्षा के लिये कोई न आ सका तो लोगों का दोष क्या? किंतु जो प्रियं- वदा सतीत्व का इतना दम भरनेवाली थी जिसका सिद्धांत ही यह था कि जब तक पति विद्यमान रहे तब तक जीवित रहना और मरते ही मर जाना, पति के सुख में अपना सुख और उनके दुःख में अपना दुःख, जिसके लिये पंडित प्रियानाथ कार्य में मंत्री, सेवा में दासी, भोजन में माता और शयन में रंभा की उपमा दिया करते थे, जो क्षमा में पृथ्वी और धर्म में तत्पर बतलाई जाती थी वह बाँधी जाते समय रोई चिल्लाई क्यों नहीं? परमेश्वर की कृपा से एक सती रमणी में अब तक भी इतनी शक्ति विद्यमान है कि यदि उसकी इच्छा न हो तो चार क्या चार सौ लठैल भी उसका बाल तक बाँका नहीं कर सकते फिर चुपचाप उसने अपनी गठरी क्यों बँधवा ली?