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जाता। वह मन को रोक न सके। वह तुरंत ही चिल्ला- कर बोल उठे --

"हाँ! वही इस अभागे की घरवाली! उसका पता बत- लाकर हम दोनों प्राणियों को जीवदान दो। उसके बिना मैं मरा जाता हूँ। बड़ा उपकार होगा।"

पंडितजी की आवाज सुनकर वे दोनों एक बार खिल- खिलाकर हँस पड़ीं और तब "कल जलसाई पर मिलेगी।" कहती हुई अपने अपने कोठों में जा छिपीं। इसके अनंतर बीसों बार पुकारने पर भी किसी ने कुछ जवाब न दिया। कुछ खटका तक सुनाई न दिया। यों जब फिर निराश होकर इसी उधेड़ बुन में लगे हुए पंडितजी आगे बढ़े तब कोई पचास साठ पग चलने के अनंतर उनके आगे "फट्ट" की आवाज के साथ कोई चीज आकर गिरी। उन्होंने वह वस्तु उठाकर टटोली, खूब आँखें फाड़ फाड़कर देखी परंतु अँधेरे में कुछ भी निश्चय नहीं हो सका कि कपड़े में क्या बँधा हुआ है! और वह न गांठ ही खालकर देख सके। अस्तु वह कदम बढ़ाए उतावले उतावले चलकर गली की मोड़ पर लालटेन के निकट पहुँचे। वहाँ गाँठ खोलकर देखते ही हलकी सी चीख मारकर एकदम बेहोश हो गए और उसी दशा में धरती पर गिर पड़े।

शायद इस बात से मनचले पाठक ऐसा अनुमान कर लें कि इस पोटली में कोई बेहोशी की दवा होगी अथवा ऐसा कोई चिह्न अवश्य होना चाहिए जिसका संबंध उन रमणियों