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फिर दुसरे कंबल से प्रियंवदा की गठरी बाँधकर सिर पर लादें
हुए यह गए! वह गए! और पंडितजी के ऊपर से देखते
देखते गायब हो गए। इन दोनों की इच्छा हुई कि ऊपर से
कूद पड़ें, परंतु कूद पड़ना हँसी खेल नहीं। जान झोंककर
गिरते तो उसी समय चकनाचूर हो जाते। इन्होंने नीचे
आकर देखा तो गोपीबल्लभ बेहोश। बस ये दोनों के दोनों
हाथ मलते पछताते रह गाए।
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