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का क्या मतलब था, वह इसका कोई परिचित था अथवा दोनों ही दोनों को नहीं जानते थे, सो समय ही शायद बतलावे तो बतलावे।

ऐसा फवता हुआ अवाजा सुनकर प्रियंवदा बस ऐसी हो गई कि काटो तो खून नहीं। उस समय उसकी प्राणनाथ से चार नजरें अवश्य हो गईं। आँखों ही आँखों में इनकी परस्पर क्या बातें हुईं सो कहने का इस उपन्यास लेखक को अधिकार नहीं है। इतने ही अर्से में बंदर चौबे बंदर से छुड़ाकर पीतांवर ले आया। इनाम में इसने अपनी अँगुली से अँगूठी निकाल कर चौबे जी को दी और "यमुना मैया तिहारो भलो करैं" का आशीर्वाद लेकर इसने पीतांबर पहना।

इस तरह अँगूठी निकाल कर देने से, पितांबर पहनने से और साथ ही इन लोगों के मुख कमल की शोभा से उस घाट पर जो लोग बैठे हुए थे उन्होंने समझ लिया कि "यात्री कोई लखपती करोड़पती अथवा राजा महाराजा है।" बस इसी लिये जब ये सूखे कपड़े पहनकर चलने लगे तो कोई दो सौ आदमियों ने चारों ओर से इनको घेर लिया। जजमाना बड़ा दानी है! बड़ा मालदार है!" की खबर सुनकर बहुत से ब्राह्मण भिखारी विश्रांत की ओर उमड़ आए। समय दुपहरी का था। ऐसे समय में दस पाँच श्रादमियों के सिवाय घाट खाली रहा करता था किंतु आज भारी यजमान का नाम