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"नहीं! मज़ाक तो एक बार क्या सौ बार करो मज़ाक के बिना सब मज़ा ही किरकिरा हो जाय परंतु ऐसी हँसी नहीं।"

"ऐसी नहीं तो कैसी?"

"हाँ हाँ! ऐसी! बस ऐसी। बहुत हो गया! अच्छा मैं हारी! ऐसी! अजी ऐसी?"

"बोल तू हारी या हम हारे?"

"मैं हारी तो मैं तुम्हारी दासी और तुम हारे तो तुम मेरे साईस।"

"भला तो दोनों में से कौन?"

"आपकी दासी, जन्म जन्मांतर की दासी।"

इस तरह कष्ट के समय भी हँसी दिल्लगी से जी बहलाने के अनंतर इन्होंने मथुरा का मार्ग लिया और वहाँ पहुँच कर बंदर चौबे के यहाँ डेरा किया।

यहाँ "बंदर" से मेरा मतलब लाल लाल मुँह के दुमदार मथुरिया बंदर से नहीं है। इस दुमदार बंदर ने पंडितायिन को कैसे छकाया सो लिखने के पूर्व मुझे यहाँ प्रियानाथ के पंडा बंदर चौबे का परिचय दे देना चाहिए। इन चौबेजी महा- राज का नाम भी बंदर था और भंग के नशे में जब यह काम भी कभी कभी बंदर का सा कर डालते और उस समय यदि लोग इन्हें हँसते तो यह चट कह दिया करते थे कि

"यजमान या में कहा अनोखी बात भई? हम बंदरन के