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"रँडुआ भला है तो मुझे जहर देकर मार डाल। नहीं निकलूँगी इस घर में से। मैं क्या तेरे बाप का खाती हूँ जो निकलूँ। लाई हूँ गट्ठड और रहती हूँ।" इस तरह सुखदा अनेक भद्दी से भद्दी और अश्लील गालियाँ सुनाती जाती थी और जेठानी को छोड़कर पति पर झाडू भी फटकारती जाती थी। इस मार कूट को देखकर सब लुगाइयाँ एक एक करके खसक गई। प्रियंवदा अवसर देखकर अपनी जान लिए वहाँ से भागी। उसने पति के पास जाकर रो रो कर सारा किस्सा सुनाया। "हाँ मैंने सब सुन लिया है। औरत नहीं एक बला है। अब तू उसके पास हरगिज न जाना।" कहते हुए प्रियंवदा के आँसू पोंछ कर प्रियानाथ ने उसे अपनी छाती से लगाया और सुखदा अपना सारा सामान गाड़ी पर लदवा कर भोर होते ही अपने मैके चल दी। अब देखना चाहिए कि कांता- नाथ की और सुखदा की लड़ाई का क्या परिणाम हो। समय सब बतला देगा।

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