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प्रकरण―४

प्रियंवदा की सुशिक्षा।

जिस समय की यह घटना है उस समय प्रियंवदा की उमर कोई अट्ठाईस वर्ष की होगी। युरोपियन समाज में जब बीस, पचीस, वर्ष तक की स्त्री लड़की समझी जाती है, अब उन लोगों में विवाह का समय ही बीस से तीस वर्ष तक का है तब यदि प्रियंवदा के अब तक कोई संतान न हुई तो कौन सा अचरज हो गया परंतु नहीं उनकी स्थिति से हमारी दशा में धरती आकाश का सा अंतर है। वे सर्द मुल्क के रहनेवाले हैं और हम गर्म देश के। उनके यहाँ जवानी का आरंभ जिस समय होता है उस समय हमारे देश की स्त्रियाँ दो बार बच्चे की माता हो जाती हैं। यदि विवाह के झमेले में पड़कर किसी की जोरू कहलाना न चाहे, यदि उसको परतंत्रता की बेड़ी में पड़ना पसंद न हो तो एक युरोपियन स्त्री आजीवन कुँवारी रह सकती है किंतु हमारे देश के रिवाज से, धर्म शास्त्रों की आज्ञा से हिंदू बालिका का विवाह रजस्वला होने से पूर्व हो जाना चाहिए। उनके लिये उनकी चाल अच्छी और हमारे लिये हमारा नियम अच्छा है। उनके यहाँ स्त्री पुरुष के परस्पर पसंद कर लेने पर, परीक्षा कर