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सकता कि पुलिस, पटवारी नहरवाले और जमीदार वा उसका कारिंदा इससे नाराज है वा नहीं क्योंकि उनके दुःख दर्द में भी यह सदा तैयार है किंतु इसका जोर बढ़ता देख कर यदि स्वार्थवश, स्वार्थ में हानि पहुँचने के डर से कोई डाह खाता हो तो अचरज क्या!

खैर! जो कुछ होगा आगे चलकर मालूम हो ही जायगा परंतु आज यह न मालूम किस उधेड़ बुन में पड़ा हुआ है। खबर नहीं कि चिलम का तमाखू जल जाने पर भी इसका हुक्के पर ध्यान क्यों नहीं है? ग्यारह की जगह बारह और साढ़े बारह बज गए। बाल बच्चे भूखों मर रहे हैं। बेटे पोते खेत जोतते जाते हैं और भूखों मरते इसे गालियाँ भी देते जाते हैं। इसकी स्त्री पैताने बैठी बैठी इसे पँखा झलती जाती है और बार बार इससे कहती जाती है कि―

"आज तुम्हें हो क्या गया? अब तो बाल बच्चों की सुध लो!"

परंतु इसका उसके कहने पर भी ध्यान नहीं। बहुएँ, बेटियाँ और पतोहुएँ रोटी तरकारी के टोकरे लेकर आ पहुँची हैं। वे भी अपने अपने आदमियों को खिलाकर आप खाने के इरादे से इसके हुक्म की राह देखती हैं और बार बार घूँघट की ओट से इसकी ओर निहारती और फिर अपना लिर झुका लेती हैं। जब तक सब घरवालों के खा लेने की इसके पास रिपोर्ट न पहुँचे तब तक एक दाना भी अपने मुँह में डालने का इसका नियम नहीं और भूख के मारे इसकी भी