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"बस बस रहने दो! तुम्हारा मज़ाक! सीखने किस भडुवे से गई थी? तुम ही मेरे गुरु! काम शास्त्र तुम से ही तो सीखा है। बुद्धिमान स्त्रियों में पातिवत का बल यदि बढ़ा हुआ हो सो कम से कम इस विषय में वे दूसरे का मन अवश्य टटोल लेती हैं।"

"कदाचित हो! परंतु मेरा मन तो ऐसी बातों को नहीं मानता। शायद धोखा हो जाय।"

"धोखा नहीं हो सकता। मैं किसी दिन साबित कर दूँगी। और यदि वह बुरा भी निकले तो मेरा क्या कर सकता है। उस मुए की मजाल क्या? उसकी क्या किसी की मजाल नहीं जो स्त्री की इच्छा बिना उसकी लाज लूट सके। आपने "आदर्श दंपति" में मेरी दादी का और "सुशीला विधवा" में मेरी भुआ का हाल पढ़ा होगा। और फिर आप भी तो साथ रहेंगे। मैं आप के बिना अकेली थोड़े ही जा सकती हूँ। जब भगवान ने मुझे आप का अर्धांग दिया है तब वह जन्म जन्मांतर तक इसको बनाए रक्खे।"

"अच्छा देखा जायगा। कभी इन बातों की परीक्षा लेंगे।"

"परीक्षा लेकर सनद भी दोगे? कौन सनद?"

"प्रिया, प्रेयसी, प्रेमिका अथवा तू कहे तो बी॰ ए॰, एम्॰ ए॰ की?

'पहली तीनों तो मेरी हैं लेकिन एम्॰ ए॰ की भी। क्योंकि पहले मैं ब्राइड और भाप ब्राइड ( दुलहिन ) के ग्रूम ( साईस )