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"हाँ जजमान! मैं कहने ही को था। यहाँ चोर उचक्कों से खबरदार रहना!"

इस तरह बूढ़े के डेढ़ सौ रुपए गए और उस समय उन भिखारियों को एक पाई तक देने से रोक कर इन लोगों ने बदले में कम से कम डेढ़ सौ ही गालियाँ खाई। त्रिवेणी के पूजन के लिये पुष्प दूध और फलादि का प्रबधं पहले ही से जंगी महाराज ने कर रक्खा था। उन्हीं से इन लोगों ने पूजन किया और कराया गोड़बोले ने। अब सूखे वस्त्र पहन कर श्राद्ध करने की पारी आई। पंडितजी ब्राह्मण और भग- वानदास तथा भोला शूद्र। पंडितजी को श्राद्ध कराना वेद मंत्रो से और औरों को "शूद्र कमलाकर" से। दोनों काम एक साथ हो भी नहीं सकते और गौड़बोले था दाक्षिणात्य। उसने शूद्रों को कर्म कराना स्वीकार भी नहीं किया। बस इस लिये दोनों भाइयों को श्राद्ध कराने का काम गौड़बोले ने लिया और भगवानदास आदि को कराया जंगी महाराज के बतलाए हुए घुरहू पंडित ने।

घुरहू पंडित विद्यावारिधि था अथवा निरक्षर भट्टाचार्य सो कहने का कुछ कुछ प्रयोजन नहीं किंतु पंडितजी के साथ होने से पूर्व गौड़बोले को जब भर की हाय हाय से चार चौक सोलह पैसे भी नसीब नहीं होते थे तब घुरहु पंडित नित्य ही सायंकाल की पूरी मिठाई खा कर पेट पर हाथ फेरता हुआ, दुपट्टे में दो तीन और कभी कभी अधिक भी]]