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अब पंडित, पंडितायिन, गौड़बोले, भगवानदास, चमेली और गोपीबल्लभ सबही इकट्ठे होकर स्नान करने के लिये भगवती में घुसे। घुसने से पहले इन सबने माता का जल लेकर माथे पर चढ़ाया और तब इस तरह उसकी स्तुति करने लगे―

पंडित जी बोले―

"हरि पद कमल को मकरंद,
भलिन मत्ति मन मधुर परिहरि विषय नीरस फंद,
परम शीतल जानि शंकर सिर धरयो तजि चंद,
नाक सर बस लेन चाहो सुरसरी को विंद,
अमृत हू ते अमल अति गुण अवति निधि आनंद,
सूर तीनों लोक परस्यो सुर असुर जस छंद,
"वैद्य की औवध खाऊँ कछु न करूँ व्रत संयम री सुन मो से।
तेरो ही पान पिए रसखान सजीवन लाभ लहै सुख तो से॥
एरी सुधामय भागीरथी सब पथ्य कुपथ्य करे तव पोसे।
आक धतूरो चबात फिरै विष खात फिरे शिव तोरे भरोसे॥"

प्रियंवदा ने गाया―

"जयति जय सुरसरी, जगदखिल पावनी।
विष्णु पद कँज मकरँद इव अँबु बर बहसि दुख दहसि,

अघवृंद विद्रावनी।


मिलत जल पात्र अज युक्त हरि धरण रज विरज वर वारि

त्रिपुरारि सिर धामिनी।