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सबके प्रिय सबके हितकारी।
दुख सुख सरिस प्रशंसा गारी॥
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी।
जागत सोवत सरन तुम्हारी॥
तुमहि छाड़ि गति दूसर नाहीं।
राम बसहु तिनके मन माँही॥
जननी सम जानहिं पर नारी।
धन पराय विष तें विष भारी॥
जे हरषहिं पर संपति देखी।
दुखित होहिं पर बपति विशेषी॥
जिनहिं राम तुम प्रान पियारे।
जिनके मन सुभ सदन तुम्हारे॥
दोहा। स्वामि सखा पितु मातु गुरु, जिनके सब तुम तात।
मन मंदिर तिनके बसहु, सीय सहित दोउ भ्रात॥
मन मंदिर तिनके बसहु, सीय सहित दोउ भ्रात॥
चौपाई। अवगुन तजि सबके गुन गहहीं।
बिप्र धेनु हित संकट सहहीं॥
नीति निपुन जिन कर जग लीका।
घर तुम्हार तिनकर मन नीका॥
गुन तुम्हार समुझहिं मन दोषा।
जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा॥
राम भक्त प्रिय लागहिं जेही।