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कपूत है। अम्मा तें फीस और किताबन के लिये पैसा मिलै जासों रबड़ी लेकर चाट जावै और जान्नीन तें माँग लावै जो भंग बूटी में, कनकौवा में उड़ा दे।"

"कपूत तू और तिहारो बाप दादा! जजमान तें वा दिना एक रुपैया तैने पायो और सो सिगरो ही यार दोस्तन कूं भंग पियायबे मैं उड़ाय दयो। पूछ अम्मा ते। (हाथ पकड़ कर खैंचता हुआ) क्यों री अम्मा? याने उड़ायो या हमने उड़ायो? हमारे पैसान ते तो घर की साग तरकारी चलै है।"

"झूंटो! बदमाश!!"

"तू झूंटो! तू बदमाश!!"

पुत्र के मुख से गाली के जवाब में गाली सुनकर बंदर को क्रोध आया। बस उसने चिनगी के तान कर एक थप्पड़ माया और वह रो रो कर कान की चैलियाँ उड़ाता हुआ अपनी अम्मा के पास पुकारू गया। इसके अनंतर चौबे जी को क्या दंड मिला सो मालूम नहीं हुआ और न इस बात से अब कुछ विशेष मतलब हो रहा किंतु इतना अवश्य हुआ कि प्रियंवदा ने एकांत में चौबायिन को जो उपदेश किया था उसका इतना असर इनकी वहाँ मौजूदगी में ही देखने में आया कि प्रियंवदा की देखा देखी दूसरे ही दिन से वह बंदर के चरण धोकर पीने लगी। रात को उसके पैर दाबे बिना कभी न सोने की उसने कसम खाली और जिस झाड़ू से पति को मारा करती थी उसे तोड़ मरोड़ कर बाहर फेंक दिया। पहले इनके यहाँ