पृष्ठ:आदर्श हिंदू १.pdf/१५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १३९ )

नहीं तब ऐसा क्यों करें? बस इसलिये उनके चरित्र में पर- कीया नायका का बिहार, प्रेम पढ़ कर, गा कर और सुन कर भी वे इसे अब भगवत की लीला समझते हैं तो उनका अवश्य उद्धार होता है।"

"हाँ अब समझी! आप ने मेरा संदेह छुड़ा कर कृतार्थ किया, परंतु चीरहरण!"

"चीरहरण में भी आध्यात्मिक रहस्य है और वह भी उसी प्रश्न का उत्तर देने में साथ साथ हल होने योग्य है किंतु चीर हरण से तेरा (हँस कर) मतलब क्या है? क्या तू स्वयं चीरह- रण पसंद करती है?"

"जाओ जी! तुम तो फिर हँसी करने लगे। मैं पूछती हूँ (जरा गंभीर बनकर तिउरियाँ चढ़ाते हुए) श्रीमती प्रियंवदा देवी आज्ञा देती हैं कि भगवान कृष्णचंद्र का गोपियों के वस्त्र चुराने से क्या मतलब था?"

"जो मतलब मक्खन चुराने में था, जो प्रयोजन चित्त को चुराने में था वही वस्त्रों को चुराने में। सात वर्ष के बालक का (मुसकराकर) और क्या मतलब हो सकता है मौज आई और चुराए और सो भी इस लिये चुराए कि आगे से कोई स्त्री जलाशय में नंगी नहा कर बेशर्म न बने। यदि वृंदाबन की तरह पंजाब में श्रीकृष्ण औरतों के इसी तरह वस्त्र छीन लेते तो वहाँ भी कोई स्त्री नंगी न नहाती?"

"हैं पंजाब में (जरा शर्मा कर) ऐली चाल है? आग लगे