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पौधों से यह स्थल इतना घना हो गया है कि यदि रास्ता भूल जाने से कोई भय न खाता हो अथवा व्याघ्र भालुओं का किसी को डर न हो अथवा सर्प वृश्चिकों की कुछ परवाह न हो तो वह यहाँ के विशालाकार शिलाखंड के नीचे महीनों तक रह सकता है। उसके लिये झरनों में जल की कमी नहीं और खाने के लिये कंद मूल फल भी मौजूद है। संसार के विरागी के लिये, घर छोड़ कर बनवासी होनेवाले के लिये, प्रकृति देवी ने, यदि उसको लोभ न हों, भय न हो और किसी प्रकार की आकांक्षा न हो, तो केवल अपना पेट पालने के लिये तृष्णा और क्षुधा तृप्त करके राम राम रटने के लिये, सब प्रकार की आवश्यकताएं पूर्ण कर दी हैं। जो साधु एकांत वास में भगवान का भजन करना चाहे उसे बस्ती में जाकर "भाई! मुट्ठी भर चने" और "बाबा, मैं भूखा हूँ" की आवाज लगानी न पड़ेगी। आबू पहाड़ पर यह एक नहीं ऐसे अनेक स्थल हैं, एक से एक बढ़ कर हैं। मैंने एक शिखर के दृश्य का एक छोटा सा नमूना दिखलाया है।

यों तो आबू के पहाड़ पर पहले ही अधिक बस्ती नहीं। थोड़ी बस्ती होने से सायंकाल का दृश्य देखने के लिये यदि इस जगह कोई जाय भी तो उनकी संख्या कितनी! किंतु आज पोलो के मैदान में किसी तरह का तमाशा है। प्रकृति का अप्रतिम, अलौकिक और सच्चा तमाशा देखने, देख कर परमेश्वर की परमेश्वरता का ज्वलंत उदाहरण पाकर उप-