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भूल है कम समझ है। जब वेदादि शास्त्रों में उनके उत्कृष्ट चरित्र से और युक्ति प्रमाणों से सिद्ध है कि श्रीकृष्ण परमेश्वर का अवतार हैं, अवतार कथा अवतारी, फिर यदि उन स्त्रियों में उनकी सेवा में सर्वस्व अर्पण कर दिया तो व्यभिचार क्योंकर हुआ? व्यभिचार एक परस्त्री का दूसरे पर-पुरुष के संपर्क से पैदा होता है किंतु यहाँ श्रीकृष्ण जगत्पति, उनके परम पति थे। उनके पति भी जब अनेक होने पर भी सब श्रीकृष्णमय थे, जैसे सूर्य एक होने पर भी अनेक घटों में भिन्न भिन्न दिखलाई देता है वैसे ही वे एक होकर अनेक दिखलाई देते थे और सब ही श्रीकृष्णावतार थे तब व्यभिचार क्योंकर हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने जैसे नारद जी को द्वारका में अपनी पत्नियों के यहाँ एक साथ भिन्न भिन्न रूप में दर्शन दिए थे वैसी ही यह लीला है। दूसरे उन गोपिकाओं में कोई श्रुतिरूपा थी और कोई ऋषिरूपा। वेद भगवान और वेद की ऋबाएँ श्रुतिरूपा। रामावतार में जिन ऋषियों ने भगवान से बरदान माँगा कि "हम आप के साथ प्रेम करें।" उन्होंने प्रेम किया। जिन्होंने उनकी पत्नी होना चाहा वे पत्नी हुई। फिर भगवान की मुरली के मनोमोहक नाद से विह्वल होकर जो गोपियाँ उनके पास दौड़ी आईं उनसे (भागवत देखो)श्रीकृष्णचंद्र ने पहले स्पष्ट ही कह दिया था कि तुम अपने अपने घर जाकर अपने अपने पतियों को भजो क्योंकि तुम्हारी गति तो तुम्हारे पति ही हैं, पति ही परमेश्वर