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लीला, ये दोनों स्थल तो मुझे आजीवन स्मरण रहेंगे? मेरी तो यही इच्छा होती है कि बस हो गई तीर्थयात्रा! इससे बढ़कर क्या होगा। अब कुछ नहीं चाहिए। अब चाहिए केवल बन- वारीलाल शोला के शब्दों में―

गजल―

"अफसोस भरी नाथ सुनो मेरी भी हालत,
पापी हूँ मुझे अर्ज से आती है खिजालत,
कैदी की तरह उम्र कटी मोह के बस में
पावद किया लोभ ने बेदाना कफस में,
हरेक धड़ी गुजरती है दुनिया की हबस में,
हरेक दिन भी नहीं काम का हर माह बरस में॥१॥
एक वक्त का तोशा नहिं औ सर पै सफर है,
पापों का बड़ा बोझ है व शिकस्ता कमर है,
हूँ आपके चरणों से लगा जान लो इतना,
कुछ और नहीं चाहता पर मान लो इतना॥२॥
जिस दम मेरी उम्मेद से घरवालों को हो यास,
सब दूर हों सरकार ही सरकार ही इक पास,
फैली हुई श्रृंगार के फूलों की हो बू बास,
मुरली की सदा कान में आती हो चपो रास॥३॥
हो जाउँ फना पाऊँ जो इतना मैं सहारा,
जब बंद हो आँखें तो मुकुट का हो नज़ारा,
दम लव पै हो सीने में तसव्वुर हो तुम्हारा,
मिट कर भी जुदाई न हो चरणों की गवारा॥४॥