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इस घटना के बाद पंडित वृंदावन बिहारी अपने घर में न रहे अपने गाँव में न रहे और गृहस्याश्रम में न रहे। वह इस तरह घर बार छोड़ कर, घर वाली और घर वालों से, धन दौलत से सगे संबंधियों से नाता तोड़ कर शिखा सूत्र का त्याग करके, न मालूम किधर चले गए। उन्होंने चोटी किससे कट- बाई, किसको गुरु बनाया और कब बनाया सो शायद कभी वही अपने मुख से बतावें तो मालूम हो सकता है। अभी तक उनके सिरहाने तकिए के नीचे जो एक पर्चा मिला उससे इतना ही मालूम हो सका कि―

'जब गृहचरित्र से, कुटुंब क्लेश से बड़े बड़े देवताओं को पराकाष्टा का दुःख भोगना पड़ा है, जब कुटुंब क्लेश ने महाराज दशरथ के प्राण लेकर भगवान रामचंद्र जी को घर से निकलवा दिया जब गृह चारित्र से―

"एका भार्या प्रकृतिसुखरा, चंचला च द्वितीय,
पुत्रस्त्वेको भुवनविजयी, मन्मथो दुर्निवार:
शेषः शय्या जलधि शयनं वाहन पन्नगारिः
स्मारं स्मारं स्वगृहचरितं दारुभूतो मुरारि;"

भगवान जगन्नाथ जी को भी काष्ट का हो जाना पड़ा तब मेरी क्या विसात? खैर जो कुछ हुआ मेरे भले ही के लिये है। यदि यह घटना न होती तो मैं संसार के बंधन से मुक्त भी न होता। श्री कृष्णभक्त महात्मा नरसिंह (नरसी) जी को जब भौजाई के ताने से तंग आकर घर छोड़ना पड़ा तब