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जवाब का परिणाम यह हुआ कि पंडितजी के घर में गली मुहल्ले के लोग लुगाइयों का ताँता लग गया। कोई उनके साथ सहानुभूति दिखलाकर उनके दुःख का बोझा हलका करने के लिये आया और कोई सचमुच तमाशा देखकर उनकी जीट उड़ाने के लिये, उनकी फजीहत करने के लिये।

सुखदा ने जो बातें मूर्च्छा के समय कही थीं उन्हें पंडित जी चाहे सच्ची ही समझते थे परंतु इस समय उनकी सुनने वाला कौन? बस उसका दूसरी बार का बयान राई रत्ती सत्य समझ लिया गया। दोनों माँ बेटी ने आनेवालियों के सामने खूब रंग लगाकर कहा। उसकी जेठानी और पति का खोटा व्यवहार बतला कर खूब ही झूठ उदाहरणों से उसे सिद्ध किया और अंत में सब लुगाइयों ने मिलकर "कसरत राय" से यही फैसला दिया की "सुखदा निर्दोष है। जो कुछ कुसूर है उसकी जेठानी, उसके पति और उसके बाप का।" दो एक बड़ी बूढी तैश में आकर पंडित जी को समझाने के लिये भी गई परंतु उनकी लाल लाल आँखें और चढ़ी हुई भृकुटी देख कर डर के मारे दवे पाँच वापस आ गई। इतना लिखने से प्यारे पाठक यह न समझ बैठें कि सब ही ने सारा कसूर प्रियंवदा के माथे थोपा हो। उनमें से कितनी ही उसे निर्दोष सती और भली समझने वाली भी निकलीं। उन्होंने उसका पक्ष करने में कमी न की। इस बात पर उन स्त्रियों को आपस में खूब लड़ाई हुई। दोनों