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थी। स्कूल के बाद भी उसका ध्यान पढ़ने लिखने की ओर अच्छी तरह था इस लिये वह गली मुहल्ले की औरतों में खूब पढ़ी लिखी गिनी जाती थी किंतु इसमें संदेह नहीं कि विद्या जो मनुष्य जाति के चरित्र शोधन की एक मुख्य सामग्री है उसने मथुरा के पास पहुँच कर एक भयंकर शास्त्र का काम दिया। चरित्रभ्रष्टा माता की कोख में जन्म लेकर, बाल वय से दुराचारिणी अवलाओं की सुहबत में पड़ने से मन बहलानेवाले और अच्छे शिक्षाप्रद उपन्यासों के बदले भ्रष्ट उपन्यासों को पढ़कर उसका चरित्र नष्ट भ्रष्ट हो गया। कुमार्ग से बचाकर सुमार्ग पर लाने के लिये किसी का उस पर अंकुश नहीं रहा अथवा यों कहो कि यदि कोई अंकुश खड़ा भी हुआ तो उसने कोपल ही में उसे तोड़ मरोड़ कर फेंक दिया, बस यही कारण हुआ कि वह आज सब फन की उस्ताद हर फन मौला बन गई।

द्वारका के घर में आने के बाद उसके भय से क्योंकि उसने मथुरा से स्पष्ट ही कह दिया था कि "जो कहीं मैंने जरा सा भी शोशा तेरी बदचलनी का पाया तो तुरंत ही (छुरी दिखला कर) इससे नाक कान काटे बिना न छोडूँगा।" अथवा उस महात्मा के उपदेश से उसने इधर उधर आँखें लड़ाना छोड़ दिया था। छोड़ क्या दिया था अधिक व्यसन में पड़े रहने से वह बूढ़ी जल्दी हो गई थी इस लिये उसे अब कोई पूछता भी न था। खैर! किसी कारण से हो अब