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दोष क्यों न हों परंतु इसमें उसका बिलकुल दोष न था। उसने एक दो, नहीं बीस वार कहा कि―"भैया रास्ता छोड़ कर जंगल में कहाँ लिये जाते हो?" उसने चिल्ला चिल्ला कर कहा कि―"इस गाड़ीवाले की नियत खराब मालूम होती है।" परंतु जो सचमुच बहरा हो वह तो शायद अधिक जोर देने से थोड़ा बहुत सुने तो सुने भी ले किंतु मतलबी बहरा ढोल बजाने पर भी नहीं सुन सकता। इस तरह बारह बजे पहुँचा देने के बदले जिस समय पाँच बजे वह गाड़ी को लेकर एक बयावान जंगल में पहुँचा। और वहाँ पहुँचते ही वह इधर गाड़ी टूट जाने का बहाना करके कुल्हाड़ी से जब खटखट करने लगा तो उधर जंगल में झाड़ियों की आड़ में से पाँच लठैतों ने निकल कर फौरन गाड़ी को चारों ओर से घेर लिया। उसने इन्हें देख कर बहुतेरी गालियाँ दी, यह बहुत रोई चिल्लाई, इसने बहुतेरी हाहा खाकर उनके आगे अपना आँचल बिछाया परंतु उन लोगों ने इसकी एक भी न सुनी। उसने उनसे अपना जेबर देते हुए ची चपड़ भी कम न की परंतु एक आदमी जब लट्ठ से उसकी खोंपड़ी फोड़ने को तैयार हो गया, दूसरे ने उसके इस जोर से थप्पड़ें मारीं कि उसके नाक में से नकसीर चल निकली और तीसरा पैर के कड़े खुलने में देरी होते ही जब कुल्हाड़ी से पैर काट डालने को तैयार हुआ तब उसने अपने हाथ से अपना गहना उतार उतार कर दे दिया।