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प्रकरण―११

सुखदा―नहीं दुःखदा।

जब कौरव-कुल-तिलक सुयोधन ही अपने कुकर्मों के कारण दुर्योधन कहलाया गया तब पति को गालियाँ देनेवाली, परमेश्वर तुल्य प्राण नाथ की झाडू से खबर लेनेवाली और इस तरह अपना घोर अपराध होने पर भी पति से क्षमा माँगने के बदले रूठ कर चली जानेवाली सुखदो को कोई दुःखदा कह दे तो उसका दोष क्या? यह अवश्य ही दुःखदा के नाम से चिढ़ती थी। यदि किसी के मुँह से उसके सामने भूल से भी दुःखदा निकल जाय तो वह कहनेवाले की सात और सात चौदह पीढ़ी के पुरुखाओं को गालियाँ देते देते स्वर्ग से टाँग पकड़ कर नरक में ला डालती थी, वह कहनेवाले पर सत्रह भाटे लेकर मारने को दौड़ती थी और ऐसे ज्यों ज्यों वह चिढ़ती थी त्यों ही त्यों लोग अधिक अधिक उसे चिढ़ाते थे।

छठे प्रकरण में लिखी हुई घटना के अनंतर वह चली अवश्य! चली क्या? पीहर के धन का भूत जो उसके सिर पर सवार था उसे लिवा ले गया। यदि माता पिता से गहरा धन पाने पर भी वह दुलार में न पली होती, यदि माता की उसे हिमायत न होती तो वह हजार लड़ाई हो