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दूसरी शादी कर लेते! पर क्यों जी? मर्दों को इतनी स्वतंत्रता क्यों बिचारी औरतों ने शास्त्र बनानेवालों का क्या बाप मारा था?"

"नहीं! मुझे दूसरी शादी नहीं चाहिये। परमेश्वर करे तू प्रसन्न रहे। मैं इसी में प्रसन्न हूँ!"

"अच्छा! परंतु मेरे सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया?"

"खैर! तब न सही तो अब सही! अब तो स्त्रियों को एक नहीं अनेक पति करने का अधिकार है ना? एक मरा और दूसरा! दूसरा मरा और तीसरा! और पति के जीते जी भी दूसरा कर ले तो क्या हर्ज है? कुम्हार की हंड़िया की तरह! क्यों तुझे भी यह बात पसंद है ना?"

"गाज पड़े (कुछ रूठ कर) इस पसंद पर! मुझ से ऐसी बातें मत करो। मेरी भुआजी ने ताऊजी को ("सुशीला विधवा" में) इसका ऐसा बढ़िया जवाब दे दिया कि उन्हें हार कर कायल हो जाना पड़ा। क्षमा करो। मैं ऐसी बातें सुनना भी नहीं चाहती।"

"हाँ! वेशक जवाब तो खूब दाँत तोड़ दिया परंतु मुझ से तेरे संताल भी तो नहीं होती।"

"आग लगे ऐसी संतान के! ऐसे बेटे बेटी से मैं बाँझ ही अच्छी हूँ। क्या बेटे बेटी के लिये मैं कसब कमाती फिरूँ?"

"नहीं! कसब नहीं! दूसरा विवाह!"