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कालचक्र के परिवर्तन से हम लोग बहुत दूर नीचे जा गिरे हैं। सच्चरित्र श्रीरामचन्द्रजी, प्रेम-रूपी सत्यवान्, पुण्यश्लोक नल, दानवीर हरिचन्द्र, कर्तव्यपरायण श्रीवत्स जिस देश में पुरुष जाति के आदर्श-स्थल हैं; और जिस देश में पवित्रता-मयी सीता देवी, सती-शिरोमणि सावित्री, पतिभक्तिपरायणा प्रेम-कुशला दमयन्ती, करुणा-रूपिणी शैव्या, तत्त्वज्ञानवती चिन्ता आदि रमणी-रत्नों ने जन्म ग्रहण किया उस देश के स्त्री-पुरुष आदर्श के अभाव से भिन्न पथ का अवलम्बन करें---इसका स्मरण होने से भी कष्ट होता है।

स्त्री-जाति ही समाज-शक्ति का प्राण है; और रमणी का पवित्र जीवन ही प्रेम है। उसका यह प्रेम माँ-बाप के प्रति भक्तिरूप में स्वामी के प्रति निष्ठारूप में, सन्तान के प्रति स्नेहरूप में, दुखियों के प्रति करुणा-रूप में और वैरी के प्रति क्षमा-रूप में तथा संसार के प्रति जगद्धात्रीरूप में नित्य प्रकाशित है। जो प्रेम-मयी रमणी संसार के कार्य में आत्म-समर्पण करके कर्त्तव्य और स्नेह के भीतर अपने को विलीन कर दे सकती हैं वे ही आदर्श रमणी हैं। उनका पवित्र वृत्तान्त चिर-व्यापी काल के ललाट में स्वर्णाक्षर से सदा अङ्कित रहता है और संसार उन शक्तिमयी जगद्धात्रियों के चरणों में प्रणत होता है। उन सती पतिव्रताओं के चरणों से निकली हुई अक्षय्य अमृतधारा देशवासियों को अनन्त काल तक शक्ति और स्वास्थ्य प्रदान करती है। इन सब महोदारचरिता महिलाओं के पवित्र जीवन की पुण्य कथा भारत की रमणियों को धर्म में, कर्तव्य और पातिव्रत में सदा उत्साहित करे---यही हमारी जगदीश्वर से प्रार्थना है।

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