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[ पहला
आदर्श महिला

यह कहते-कहते हनुमान्, रामचन्द्र की उत्कण्ठा देख कर, आँसू गिराने लगे। रामचन्द्र ने हनुमान् के आँसू देखकर सँभलते हुए कहा—"वत्स हनुमन्! आज सीता का समाचार देकर तुमने मेरे मृत शरीर में प्राण डाला है। मेरे पास ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसे, तुम्हारे इस अलौकिक कार्य्य के लिए, पुरस्कार में दे दूँ। आओ वत्स! तुम्हें एक बार इस विरह से जलती हुई छाती से लगा लूँ।" हनुमान् ने उस देवदुर्लभ श्रेष्ठ शरीर का आलिंगन पाकर अपने को धन्य माना।

[ ८ ]

श्रीरामचन्द्र हनुमान के मुँह से सीता का समाचार पाकर बन्दरों की सेना-सहित लङ्का जाने की तैयारी करने लगे। लालसा पूरी होने में क्षण भर का विलम्ब उनके लिए युग समान बीतने लगा। निदान वे इस प्रकार व्यग्र हृदय से समुद्र के किनारे आ पहुँचे। अब यह चिन्ता हुई कि इस अपार समुद्र को कैसे पार करें। समुद्र की कृपा पाने के लिए रामचन्द्र ने तपस्या आरम्भ कर दी। उनकी तपस्या का उद्देश था—या तो सेना-सहित समुद्र लाँघना या प्राण दे देना। रामचन्द्र की तपस्या से जब समुद्र प्रसन्न नहीं हुआ तब उन्होंने अधीर होकर धनुष-बाण सँभाला। सङ्कट देखकर समुद्र प्रार्थनापूर्वक उन्हें सेतु बाँधने का उपाय बता गया।

वानरी सेना के आनन्द की सीमा नहीं थी। बन्दर पेड़, पत्थर उखाड़-उखाड़ समुद्र में डालने लगे। वानरी सेना की तत्परता से और नील नामक वार्नर की कारीगरी से सेतु-बन्धन बहुत जल्द पूरा हो गया।

रामचन्द्र वानरी सेना लिये हुए लङ्का में सहर्ष पहुँचे। वीरों के पद-भार से गढ़-त्रिकूट पर बसी हुई लङ्का काँप उठी।

समुद्र पर सेतु-बन्धन की, और वानरी सेना-सहित रामचन्द्र के