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आदर्श महिला


धीरे-धीरे दोनों भाई पम्पातीर*[१] पहुँचे। रामचन्द्र पम्पा का मनोहर दृश्य देखकर अपने को भूल गये। सीता का विरह उनके हृदय को व्याकुल कर रहा था। इतने में, एक दिन, सुग्रीव के भेजे हुए हनुमान् ने आकर रामचन्द्र को प्रणाम किया। हनुमान के उस सुजनता-भरे अभिवादन से लक्ष्मण का हृदय सहानुभूति पाने की आशा से बलवान हो गया। लक्ष्मण ने हनुमान् का आदर करके कहा—हे वीर! तुम कृपा करके अपने राजा से कहो कि हम विपद-ग्रस्त किष्किन्धा-पति से सहायता माँगते हैं।

सुग्रीव से रामचन्द्र की भेंट हुई। सुग्रीव ने ऋष्यमूक पर्वत पर मिले हुए भूषण आदि दिखाये। रामचन्द्र उन भूषण आदि को छाती से लगाकर रोने लगे। उनके रोने से पत्नी से बिछुड़े हुए सुग्रीव की विरहाग्नि भभक उठी। रामचन्द्र ने सुग्रीव के मुँह से उसके पत्नीहरण का वृत्तान्त सुनकर प्रतिज्ञा की—मैं बाली को मारकर पापी को दण्ड दूँगा।

रामचन्द्र के बाण से बाली मारा गया। सुग्रीव का पत्नी के शोक से आतुर हृदय रामचन्द्र को मित्रता से बैर का बदला चुकने पर आनन्दित हुआ। सुग्रीव ने मित्र के काम में जी-जान होम करके बन्दरों की सारी सेना को सीता की खोज में भेज दिया। इसी समय विभीषण ने आकर रामचन्द्र की शरण ली।

एक दल बन्दरों की सेना-सहित हनुमान् ने दक्षिण समुद्र के किनारे जाकर सुना कि यहाँ से बारह योजन पर लङ्का टापू है। हनुमान् ने एक बार सोचा कि यह बारह योजन समुद्र लाँघने का


  1. * ऋष्यमूक पर्वत पर चन्ददुर्ग के पत्थरों से घिरा हुआ सरोवर है। उस सरोवर से निकली हुई नदी पम्पा कहलाती है। वह उड़ीसा में तुङ्गभद्रा से जा मिली है।