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आदर्श महिला

भूल कर, फेंके हुए वस्त्र मानो रथ के बाहर के जगत् को इशारे से कहते थे कि दुष्ट रावण सीता को हरकर लिये जाता है, यह बात रामचन्द्र से कहना।

सीता को लेकर रावण सीधा लङ्का में पहुँचा। ऐश्वर्य के गर्व से फूली हुई लङ्का सती के पद-भार से विचलित हो गई। उस स्वप्नमयी स्वर्ण की लङ्का का ऐश्वर्य देखकर रावण ने सीता से प्रेम-प्रार्थना की। सीता ने क्रोध से काँपते हुए स्वर से कहा—अरे अभागे का-पुरुष! क्या बकता है? दूसरे का पैर चाटनेवाला कुत्ता होकर तू यज्ञ का हवि लेना चाहता है? पापी! तेरी पाप-वासना से चिरपवित्र प्रकृतिधर्म कलङ्कित हुआ है। मैं, दिव्य नेत्र से, तेरा सवंश नाश देख रही हूँ।

यह कहकर सीता ने घृणा-सहित रावण की ओर से मुँह फेर लिया। उस तेजस्विनी सती मूर्ति से मानो क्रोधाग्नि की लपट पापिष्ठ को भस्म करने के लिए निकलने लगी। उद्धत रावण ने, उपाय न देखकर, सीता को पाप-मार्ग में बहकाने के लिए राक्षसियों के साथ अशोक-वन में भेज दिया।

[ ५ ]

प्राकृतिक सौन्दर्य से भरे-पूरे अशोक वन में सीता देवी का मुख- कमल आँसुओं से भीगा हुआ है। पहरा देनेवाली राक्षसियों को देखने से जान पड़ता है कि वे मानो प्रेत-भूमि में विचरनेवाली पिशाचिनियाँ हैं। मानो भयङ्करता ने स्वयं वेष धारण कर लिया है। ऐसा मालूम होता है कि अशोक-कानन में सीता देवी "विष-लताओं से घिरी हुई महौषधि" हैं। दुष्ट राक्षसियों की पापभरी बातों से सीता देवी की आँखें, बिजली भरे बादल की तरह, जल बरसाने लगीं। निठुर राक्षसियाँ, भूख-प्यास से दुर्बल बनी हुई, सीता को कभी