यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रस्तावना

यह प्रसिद्ध धर्म-प्रधान भारतवर्ष विधाता की अपरिमित दया से चिरपवित्र है। भारत का ज्ञान-विज्ञान, भारत का काव्य-कलाप, भारत की पुराण-संहिता अब तक सारे संसार को धर्म की शिक्षा दे रहीं है। भारत की प्रधानता का विचार करते हुए एक बार उसकी भौगोलिक अवस्था की ओर दृष्टि दीजिए; देखिए, उत्तर दिशा में तुषार-रूपी स्वच्छ किरीटधारी हिमालय पहाड़ समस्त भूमण्डल से ऊपर सिर उठाकर भारत की प्रधानता की घोषणा कर रहा है। मानव-प्रीति की निदर्शन-स्वरूप सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गङ्गा और यमुना आदि पवित्र नद-नदियाँ हिमालय से प्रवाहित होकर भारतवर्ष की भूमि को उपजाऊ और शस्य-श्यामल कर रही हैं। दक्षिण-तुङ्ग-तरङ्ग-निनादित रत्नराजिराजित महासागर कुमारिका* देवी के मन्दिर की सीढ़ियों को निरन्तर पवित्र जल से धो रहा है। पूर्व और पश्चिम भाग में भी समुद्र की विस्तृत शाखाएँ और ऊँचे-ऊँचे पहाड़ हैं। इस कारण भारतवर्ष पहाड़ और खाई से घिरा हुआ, प्रकृति का, एक मज़बूत किला है। इसी से भारतवासियों ने चिरकाल तक शान्ति-सुख का बेखटके उपभोग किया है; निःशङ्कभाव से धर्म की आलोचना की है और संकोचरहित हो पृथिवी में ज्ञानोपदेशक गुरुदेव का आसन ग्रहण करके प्राच्य सामाजिक जीवन की नीव डाली है। कोई जाति क्यों न हो, जब उन्नत हुई है तब धर्म की उन्नति से ही उन्नत हुई है। भारतवर्ष भी धर्म के पथ में विचरण करके जातीय उन्नति के सिद्धक्षेत्र में


  • कुमारिका देवी के नाम से ही कुमारी-अन्तरीप प्रसिद्ध है।