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आख्यान]
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चिन्ता

बादलों से ढके हुए चन्द्रमा की तरह, एक नौजवान दीन वेष में बैठा है। राजकुमारी ने हाथ जोड़े और उसी के गले में जयमाल डाल दी।

स्वयंवर-सभा में आये हुए राजकुमार लोग, राजकुमारी के इस काम की निन्दा करते-करते अपने-अपने घर गये। लड़की को ऐसा पति चुनते देखकर राजा बाहुदेव बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने वर और कन्या को राजधानी से निकाल दिया। बाहुदेव की रानी की दया से वे दोनों राजधानी के बाहर एक झोपड़ी में रहने लगे।

[१६]

एक दिन श्रीवत्स ने हिसाब लगाकर देखा कि शनि की दृष्टि के बारह वर्ष बीत गये। तब उन्होंने शनि को प्रणाम करके कहा—भगवान् शनैश्चर! कृपा कीजिए। कष्ट तो बेहद भोगा। अब मेरी चिन्ता को लैटा दीजिए।

राजा की इस प्रार्थना पर शनि को दया आई।

राजकुमारी भद्रा की सेवा से भी श्रीवत्स के चित्त को सुख नहीं मिलता। भद्रा की वह बढ़िया सुघराई, बसन्ती बेल का वह मनोहर दिखावा—उस नवयौवना के अङ्गों की वह शोभा राजा को तृप्त नहीं कर पाती थी। राजकुमारी भद्रा ने एक दिन राजा श्रीवत्स से कहा—नाथ! आप इतने उदास क्यों रहते हैं? क्या मैं आपकी प्रेम-पूजा के योग्य नहीं? आप सदा चिन्ता में रहकर इस अधीन बालिका का जी क्यों दुखाते हैं?

भद्रा के इन वचनों से सन्तुष्ट होकर राजा ने कहा—देखो भद्रा, दरिद्रता के दोष से सब गुण फीके पड़ जाते हैं। मेरा भी यही हाल है। अब तुम एक काम करो। देखती तो हो कि धन बिना मैं कितना